Monday, December 10, 2018

अच्छा है, देह बन कर रहना .


अच्छा है , देह बन कर रहना,

जब,जहाँ, जैसा, बन जाना,


शौक,अरमान,सपने,उमंग,


फेंक कर अंधे कुंए मे,


लौट कर वहीं आना।


बिछा देना इस देह को 


घर की देहरी पर । चाहे रखें जूते की नोंक पर


 या घसीटें चप्पलों से ।


 टांग देना इसे  दीवार पर ,

तस्वीर की तरह ।

न बीधेंगे व्यंग बाण,

न आहत होगा मन,

गूँजेगी घर में,


पहले ध्वनि, फिर प्रतिध्वनि।


बिस्तर पे बिछ कर, रसोई मे घुस कर,


इस देह को छोड़ देना।


अब न सिसकेगा, न समझेगा ।

कैसा होता है जलील हो कर रहना ।


अच्छा है, देह बन कर रहना ।

Tuesday, September 18, 2018

काले हीरे की बरकत

एक अरसा हो गया था धनबाद गए हुए| इसलिए जब पुतुल दी का जन्मदिन और रिटायरमेंट दोनो अवसर एक ही दिन होना था तो सोचा इससे अच्छा मौका फिर नही मिलेगा |
असल मे इस मौके को जम के सेलीब्रेट करने का आइडिया मन्नु का था |बच्चों की एनर्जी के क्या कहने !अपनी अपनी बहुत वयस्त जिंदगी से भी कुछ पल निकाल कर  जिंदगी को जी लेते हैं|शायद यही वो अनमोल पल होते हैं जिन्हे याद कर फिर से तरोताजा होकर अपनी रूटीनी सफर पर वापस चल देते हैं| रिजर्वेशन करवाने  से लेकर वहां की व्यवस्था सबकुछ  उन्हे करना था इसलिए अपनी जडो़ को फिर से देखना कई पुरानी सहेलियों से मिलने का मौका सोचा ,फिर नही मिलेगा|
ये अच्छा था की हम बरसात के दिनों मे गये थे|
लगा  वहाँ के पेड़  पौधे सब नहा धो कर  अपने सर्वोत्तम रुप मे हमारा स्वागत कर रही हो| वरना और दिनो में इन का सुन्दर हरा रंग कोयले की काली धूल की परत से छुपा रहता है |और काला दिखता है |
कोयलांचल का जीवन दूसरे इलाके के जीवन से कितना कठिन है,ये वहाँ रह कर दिखता है|कोयले की काली धूल भरी आंधी जो फेफडो़ के अंदर जम जाती है|  यहाँ फेफडो़ की बिमारी  झेलने की त्रासदी है|
झरियाऔर झरिया से लगे इलाके वर्षों की लगी आग की वजह से जस का तस दिखती  हैं |सरकार की वैधानिक चेतावनी के बावजूद ,पुराने समय से चले आ रहे व्यापार का केन्द्र झरिया को कोई छोड़ने को तैयार नही है|
बदहाल सड़कों की दशा देख कर लगता है सड़कें भर्ष्टाचार की कहानी  खुद बयान करती नजर आती है| देश को सबसे ज्यादा राजस्व देने वाला राज्य खुद इतना बेजार है| देख कर अफसोस होता है |अफसरों कर्मचारियों की लूट का नमूना बनी यहाँ की कम्पनी बंद करनी पडी़  |अवैध कोयला खनन पर वर्चस्व की लडा़ई में न जाने कितनी हत्याऐ होती हैं|खून खराबा चलता रहता है लेकिन आम लोगों को कोई नुकसान नही होता|
ये काला हीरा वहां की बरकत है तभी तो लोग इसे छोड़ नही पाते|

Friday, September 7, 2018

रिटायरमेंट नही रि स्टार्ट|

जीवन की दुसरी पारी|
आज पुतुल दी का जन्मदिन है,और आज ही उनके रिटायरमेंट का दिन भी है| मुझे लगता है,स्कूल ने उनके जन्मदिन पर सबसे बढि़या गिफ्ट दिया है| पुतुल दी फिल्में बहुत देखती है ं|मुझे दिल वाले...का वो डायलॉग उन पर सही लगता है,
'जा सिमरन जा,जी ले अपनी जिंदगी |'
सब तरह से फिट पुतुल दी कहीं से भी रिटायर्ड नही दिखती ,अच्छा है अब वो अपनी उन शौक के काम कर पाऐंगी जो अब तक नही किया |
हां उनके स्कूल के सहकर्मी,और नन्हे छात्र उन्हें जरूर मिस करेंग |मै ऐसा इस लिए कह रही हूँ क्यों की एक दिन उनका मोबाइल पर्स मे मेरे नम्बर पर लग गया ,ये टच स्क्रीन का कमाल था| उस एक घन्टे के दौरान उनके कार्यस्थल का जायजा मिल गया| वो छोटे बच्चे की क्लास थी| हम अपने एक दो बच्चे को पालने मे परेशान रहते हैं उधर ढे़र सारे बच्चों को सम्हालना छोटे बच्चों की छोटी छोटी शिकायतें इसने मेरी पेंसिल छीनी ,उसने मुझे धक्का मारा |अटेंडेंस की बारी आई कोइ सो रहा है,उसे उठवा कर हाजरी बनवाना| कोइ बच्चा नही आया तो क्यों नही आया| इतनी चिन्ता कौन करता है भला| यही उन्हे फेवरिट मैम बनाता है|
पुतुल दी हमारी भी फेवरिट हैं| हर जगह ,हर तरह की परिस्थिति में फिट होने वाली, गाना हो चाहे खाना बनाना और कई गुणों का पावर पैक |पुतुल दी को ढेर सारी शुभकामनाएं|

Sunday, September 2, 2018

दलितों कि राजनीति..

अब बाबा अंबेदकर के प्रपोत्र  RSS पर प्रतिबंध की मांग कर रहे हैं|  जबरन किसी का मुँह बंदकर या प्रतिबंधित कर  समस्या का समाधान हो जाएगा  ?  नही, ऐसा नही है|


बल्कि यह  एक ऐसी संस्था है ,जो अपने स्वंसेवकों को सार्वजनिक. सफाई की शिक्षा   देता है|चाहे अपना मल मूत्र हो या किसी और की| 

बात प्रतिबंध की नही प्रतिबद्धता की  है|

अगर आप सवर्ण हैैं और दलितों के बारे मे कुछ आँखों को खोलने वाले  मुुुुद्दों को  बताना  चाहते हैं तो यह बड़ा मुश्किल है |ना जाने कौन इसे  किस चश्मे से  पढे़गा  ,फिर आपका इतिहास,भूगोल खंगाला जाएगा |आपके इससे पहले के वक्तव्यों के कोटेशन निकाले जाएंगे और उन्हें बिना किसी प्रसंग ,उन टुकडों को उछाला जाएगा|  ये नेतागिरी चलाने के टोटके हैं | यही लोग  अगर ईमानदारी से अपने  समाज के लिए कुछ करते तो तस्वीर कुछ और होती| समाज मे जब तक आर्थिक समानता नहीं होगी ,समाज इसी तरह टुकड़ो मे बंटा रहेगा| अगर कोई चपरासी ब्राह्मण हो और अधिकारी भी ब्राह्मण हो तब भी उसके साथ अधिकारी चाय नही पीता| ये पैसों की अलिखित व्यवस्था है| कोइ  भी दलित मंत्री अधिकारी बनते हैं तो  सबसे पहले खुद के, फिर अपने रिश्तेदारों में रेवड़ीयां बांटते  हैं |जब तक उसके समाज की बारी आती है ,आते आते सत्ता हाथ से निकल जाती है|

एक वार जो सवर्णो के द्वारा शोषण का ढोल पीट दिया गया वो निरंतर  बजता ही जा रहा है|

अब उनका शोषण उनके समाज के लोग ही कर रहे हैं| उनके समाज के नेता जो मंत्री बने हैं| उन्होंने वर्ण व्यवस्था को सुधारने के लिए क्या ठोस काम किया? उनके घरों में मल मूत्र की टंकी कौन साफ करता है| दलित अफसरों के टॉयलेट कौन धोता है ?बाबा साहेब की मूर्तियों को जहाँ तहाँ लगवाने की बजाय उनके सुझाए सुधारों को लागू करवाते तो तस्वीर अब तक काफी सुधर गई होती| बाबू जगजीवन राम की बेटी के लाईफ सटाईल की पहुँच कितनो  तक है| दलित क्वीन ,मायावती जी के क्या कहने ,जितना धन हाथीयों की मूर्तियों मे लगाया है  ,उतने मे कई स्कूल खोले जा सकते थे| सवर्णों और दलितों में खाई शिक्षा की  है| अब जबकी हर सरकारें ,कानून,प्रसाशन  उनके उत्थान को कटिबद्ध है ,तो जरुरत जाग्रति की है|

एक और दलित नेता  ने मंत्री बनने के बाद वही सारे शौक पालने शुरु कर दिए जो अय्याश नेता करते हैं |उनकी  जेब मे सोने की कलम रहने लगी| इसके बदले हर दलित बच्चे के हाथों मे कलम थमाई होती ,  तो ना जाने कितने दलित बच्चों का जीवन सुधर गया होता |यह समाज के बनाए कुचक्रों का खेल है अगर इनमें शिक्षा का प्रसार होता तो यह भी उसी समाज के अंग होते क्योंकि शिक्षित रहने पर  उन्हें नौकरी मिलती ,उनका जीवन स्तर सुधरता |

आज के आधुनिक समय में  पैसे से इज्जत आती  है किसी के माथे पर उसकी जाति का नाम नहीं लिखा रहता  |लोग आपको आपकी भाषा,रहने के जीवन स्तर से पहचानते है|जब तक इस कुचक्र को उल्टा घुमा कर सुचक्र मे नही बदला जाएगा ये नेताओं के बनाए दलदल मे धंसते चले जाऐंगे |

Sunday, July 29, 2018

चंगुल मे।

सुबह के 9:00 बजे हैं अभी मैं एम्स में हूं  ।पिछले पांच सालों से  मेरा इलाज चल रहा है । इन पाँच   साल मे मरीजों की संख्या मे चौगुना बढ़ौतरी हुई है। चारों ओर लोगों का रेला है चल रहा है।किसी को लाइन में लगना है, किसी को कमरा नंबर पता करना है, कोई अपने डॉक्टर का कमरा ढूंढ रहा है। इसे अफरा-तफरी ,ठेलम ठेला , धक्का मुक्की  जो भी चाहे कह  लेंं । लेकिन यह रोज का दृश्य है जबकि यहां तैनात सुरक्षाकर्मी काफी सहयोग करते हैं शायद उन्हें खास हिदायत दी जाती  होगी , कि उन्हें मरीजों और मरीजों के परेशान परिजनों  के बीच काम करना है  ।
मरीजों मे सबसे ज्यादा संख्या बिहारियों की है। सब मरीज बिहार के डॉक्टरों द्वारा बिगाड़े  हुए केस हैं । ये ईलाज के नाम पर मरीजों का खून चूसने का काम करते हैं ।जब सारे पैसे ख़त्म ना हो गलत इलाज चलता रहता है। जब  तक मरीज मर्णासन और कंगाल न हो जाए ।बिहारी
 अभी भी  पर्यटन के नाम पर   तीर्थ यात्रा करते हैं। दिल्ली का एम्स बिहारियों के लिए तीर्थ से कम नहीं है है। एम्स के डॉक्टर उनके लिए भगवान हैं   चाहे मरीजों से  बीमारी के बारे में  पूछने का रवैया  या दवाई लिखने की बात 
सस्ती और  सही दवा।
प्राइवेट में  डॉक्टर  बिना  जरूरत  ढेर सारी दवाइयां लिख देते हैं  क्योंकि  उन्हें कमीशन मिलता है  मंहगे टेस्ट करवाने को बोल देते हैं ।
पता नहीं  दिल्ली के एम्स के डॉक्टर  किस कुएं से पानी भी पीते हैं  और बिहार के डॉक्टर  किस कुएं का पानी पीते हैं । यहां डॉक्टर भगवान बन जाते हैं  और वहां के डॉक्टर  शैतान ।  मरीजों के पैसे से पैसे से आबाद हुए ये डॉक्टर आलीशान मकान मे रहते हैं।    डॉक्टर पिता की भुसकौल संतान ,क्लीनिक को चलाने के लिए डोनेशन देकर डॉक्टर बने ये लोग  मरीजों का खून चूस कर ही क्लिनिक चलते हैंं ।सालों से पटना में एम्स बनने की खबर सुन रही हूं  अगर बना भी हो तो वो विश्वस नहीं जमा है ।ये नेताओं की हवा हवाई है ।हमारी तकदीर में यही धक्का-मुक्की लिखा है ।अपने खून पसीने की कमाई डॉक्टरों के आगे उझल कर  आ जाते हैं। शायद पिछले जन्म का कोई कर्ज हो । मरीज बर्बाद हो रहे हैं डॉ आबाद हो रहे हैं। न  जाने कब  बिहार के डॉक्टरों की अंतरात्मा जागेगी और वो मरीजों का भला सोचेंगे ।
हे भगवान मुझे माफ करो मैं धरती के भगवान उकी शिकायत कर रही हूं ।लेकिन यह मेरी मजबूरी है क्योंकि  आपने उन्हें भगवान बना कर भेजा ,फिर वे शैतान क्यों बन गए?  हाँ ,अभी भी कुछ अच्छे और ईमानदार डॉक्टर हैं।मेरे इस आलेख से उन्हें ठेस पहुंची हो तो मैं क्षमा चाहुँगी। लेकिन सच्चाई यही है।

Wednesday, July 11, 2018

रंगमंच से

छोटे शहरों में अभी भी मनोरंजन के नाम पर फिल्में ही देखी जाती हैं चाहे वह हॉल में हो या TV पर इसलिए दिल्ली में नुक्कड़ नाटकों से जुड़ी कोमिता से मिली तो बातों ही बातों में मैंने उससे कहा मैंने अभी तक कोई बढ़िया नाटक नहीं देखा तो उसने ज्योती डोगरा की एकल मंचन वाली  नाटक देखने को कहा यह नाटक छतरपुर में होना था शायद सारे लोग दिल्ली की कलाजगत से जुड़े    लोग थे ।पूरा माहौल काफी कलात्मक लग रहा था हल्का प्रकाश और मोमबत्तियों की जगमगाहट, हॉल  खचाखच भरा था । इस फास्ट फास्ट जमाने में इत्तमिनान से नाटक शुरू हुआ काफी लंबा  सांसों के उतार-चढ़ाव से शुरू हुआ उनका नाटक,दर्शक दम साधे नाटक देख रहे ।  विषय चाय था ।एक चाय के इतने आयाम हो सकते हैं? सोचा न था दर्शक भले अभिजात्य वर्ग के थे  लेकिन प्रसंग दिल्ली के मध्यम वर्ग से जुड़े थे।
नाटक देखने के बाद यही ख्याल आया दूध की उम्मीद में मेरे हाथ में मलाई आ गई ।नाटक के बारे में सिर्फ एक शब्द अद्भुत  ! चाहे वह अभिनय हो, परिकल्पना हो, मंच पर प्रकाश का प्रयोग हो बल्कि पूरी तरह  प्रयोग शाला  थी ।कहने को यह एकल अभिनय था लेकिन दर्शकों को साथ समेटते हुए उन्हें भागीदार बना कर । कुछ तो बात थी। पर हां, दर्शक  भी खास थे ।  विलक्षण कलाकार हैं ज्योति डोगरा जी।   एक अकेली महिला ने इतने रूप धरे , सब के सब हमारे आसपास के लोग  सारा कुछ हमारा देखा-सुना था पर सिर्फ आवाज से वैसा  माहौल बनाना कला है ।  दर्शक आत्मसात कर रहे r लगा   अगल बगल के परिवेश को खुद जिया हो बारीक से बारीक भाव भंगिमा।   चाहे औरत  की कुंठा हो,   या बुढापे की त्रासदी ,बदली आवाज़।  हमें पीछे की कुर्सियां मिली जब वह बैठ जाती थी ,हमें कुछ नहीं दिखता था उस समय में लगता था हम रेडियो सुन रहे हो रेडियो नाटक ! लेकिन फिर भी जो प्रभाव था उनकी आवाज की वजह से वह तारत्म्य बना रहा इतने सुंदर अभिनय के लिए मैं उन्हें बधाई देती हूं और शुभकामनाएं देती हूं

Tuesday, July 10, 2018

क्या फायदा ?

आधुनिकता ने हमे दो चीजों का श्राप दिया है।बाहरी तौर पर प्रदूषण और भीतर से तनाव और डिप्रेसन ।  !अब डाक्टर भी कहते पाए जाते हैं कि हर बीमारी की जड़ यही नासपीटा तनाव है। यहां तक कि फोड़े फुंसी भी ?
कैसे  ,कैसे  ,कैसे ?
वो ऐसे ,की जब कोइ राज आप अपने भीतर  छुपा कर रखते हैं ।जाहिर हैअब कम ही लोग खुले दिल के होते हैं । इसलिए हर चीज की तरह  कुछ दिनों में ये भी सड़ने लगतीं  हैंं  । शायद  यही वो  वजह हो सकती है ।
 अलबत्ता,टेंसन नही लेने का ,बिंदास रहने का,टेंसन देने का,लेने का नही ,जुमले खूब उछाले जाते हैं, दुकान में   आकाश छूती मंहगाई की बात  पर  दुकानदार झट से कहेगा आप इसकी 'टेंसन मत' लो जी ।
भैया पैसे मुझे देने हैं टेंसन कैसे न् लूं?
कुछ मामलों में टेंसन हो ही जाती है ।
आपने खूब मेहनत कर सुख सुविधा के सभी साधन  जमा कर लिए। सोचा होगा अब  चैन से रहेंगे, कोई टेंसन नही होगा।लेकिन  सुबह सुबह जब काम  वाली बाई नही आती है ,उस समय की बैचैनी याद है?
 तो पूरे दिन टेंसन टेंसन  टेंसन 
ऐसे ही आप की टेंसन की कई वजहें ड्राईवर ,गार्ड वगैरा होती हैं।
बच्चे स्कूल से लौटते हैं।
कहीं बैग,कहीं जूते, सबसे पहले टी.वी.खोल कर बैठ जाते हैं।
झुँ   झुँ   झुँ    झुंझुलाहट।
 ऐसे टेंसन के मौक़े आते रहेंगे,बस कोशिश करें इन मौके पर कूल बने रहें।बच्चे बैग,जूते फेकेंगे ही, उठाना आपका काम है।अबतक नही सिखाया तो कभी नही सीखेंगे। बच्चों के साथ आप भी  टी वी देखें।
पतिदेव शाम को शॉपिंग का वादा कर के नहीं आते हैं।
गु    गु    गु  गुस्सा।
आज नहीं तो कल उन्ही के  साथ शॉपिंग करना है। इस गलती का फायदा उठाने का मौका नहीं चूकें। आईस क्रीम की फरमाइश करें ।क्यों क्या की ओर मन को न लगाएं , गुस्से की दहक कम होगी।

अथ् टेंसन गाथा

आधुनिकता ने हमे दो चीजों का श्राप दिया है।बाहरी तौर पर प्रदूषण और भीतर से तनाव और डिप्रेसन ।  !अब डाक्टर भी कहते पाए जाते हैं कि हर बीमारी की जड़ यही नासपीटा तनाव है। यहां तक कि फोड़े फुंसी भी ?
कैसे  ,कैसे  ,कैसे ?
वो ऐसे ,की जब कोइ राज आप अपने भीतर  छुपा कर रखते हैं ।जाहिर हैअब कम ही लोग खुले दिल के होते हैं । इसलिए हर चीज की तरह  कुछ दिनों में ये भी सड़ने लगतीं  हैंं  । शायद  यही वो  वजह हो सकती है ।
 अलबत्ता,टेंसन नही लेने का ,बिंदास रहने का,टेंसन देने का,लेने का नही ,जुमले खूब उछाले जाते हैं, दुकान में   आकाश छूती मंहगाई की बात  पर  दुकानदार झट से कहेगा आप इसकी 'टेंसन मत' लो जी ।
भैया पैसे मुझे देने हैं टेंसन कैसे न् लूं?
कुछ मामलों में टेंसन हो ही जाती है ।
आपने खूब मेहनत कर सुख सुविधा के सभी साधन  जमा कर लिए। सोचा होगा अब  चैन से रहेंगे, कोई टेंसन नही होगा।लेकिन  सुबह सुबह जब काम  वाली बाई नही आती है ,उस समय की बैचैनी याद है? 
 तो पूरे दिन टेंसन टेंसन  टेंसन 
ऐसे ही आप की टेंसन की कई वजहें ड्राईवर ,गार्ड वगैरा होती हैं।
बच्चे स्कूल से लौटते हैं।
कहीं बैग,कहीं जूते, सबसे पहले टी.वी.खोल कर बैठ जाते हैं।
झुँ   झुँ   झुँ    झुंझुलाहट।
 ऐसे टेंसन के मौक़े आते रहेंगे,बस कोशिश करें इन मौके पर कूल बने रहें।बच्चे बैग,जूते फेकेंगे ही, उठाना आपका काम है।अबतक नही सिखाया तो कभी नही सीखेंगे। बच्चों के साथ आप भी  टी वी देखें।
पतिदेव शाम को शॉपिंग का वादा कर के नहीं आते हैं।
गु    गु    गु  गुस्सा।
आज नहीं तो कल उन्ही के  साथ शॉपिंग करना है। इस गलती का फायदा उठाने का मौका नहीं चूकें। आईस क्रीम की फरमाइश करें ।क्यों क्या की ओर मन को न लगाएं , गुस्से की दहक कम होगी।

Thursday, July 5, 2018

रेलगाड़ी

कहीं पर्यटन पर जा रहे हों और सफर की शुरूआत लंबी दूरी की ट्रेन से हो तो आनंद आ जाता है बिना किसी बाधा विघ्न के इतनी अच्छी नींद तो होटल के कमरे में भी नहीं आती है सुबह की चाय के लिए बैरा घंटी बजा  ही देता है न मॉर्निंग वॉक की झंझट और ना टाइम पर चाय पीने की मजबूरी इतनी चैन की नींद ट्रेन मे ही संभव होती है । खिड़की के पास वाली सीट भाग्य वालों को मिलती है अगर सामने वाले बर्थ के सहयात्री का चेहरा पसंद ना हो तो भी खिड़की वाली सीट काफी राहत देती है। रंगों की अलग-अलग छटा देखनी है तो फसल के समय में दिखती है रंग चाहे हरा हो या पीला ।सरसों के खेत का पीलापन ,रंगों के इतने बारीक अंतर आपको कहीं नहीं मिलेंगे भारत एकता में अनेकता का देश है इसका अनुभव आपको रेल यात्रा में मिलेगा ।  हर 7 कोस पर बोली और पानी बदलती है यह साक्षात दिखता है , स्थानीय लोगों की भाषा ,पहनावा आहिस्ते आहिस्ते बदल जाती है ।एक ही हिंदी उसके कई रूप सुनने को मिलेंगे हैं  आप किस इलाके में है ये वहाँ के लोगों को  देख कर समझ जाऐंगें ।लोग चढ़ते हैं उतरते हैं, बातें करते हैं नए नए चेहरों को देखना एक अलग  अनुभव प्रदान करता है ।अगर आप उत्तर भारत से दक्षिण भारत की तरफ जा रहे हों तो आश्चर्य लगता है संस्कृति  मे इतना अंतर ,धीरे-धीरे भाषा की पकड़ एकदम कमजोर होने लगती है कुछ भी पल्ले नहीं पड़ता है लेकिन पैसे की भाषा सब जगह चलती  है  ।    AC के अंदर से  देखना ,लगता है जैसे हम TV देख रहे हों तेजी से बदलते दृश्य आपको पलक झपकाने का मौका नहीं देती है। सफर करने के दौरान आपको लगेगा कि भारतीय रेल भारत की लाइफ लाइन है सस्ती भी है और आरामदायक भी है।

Wednesday, July 4, 2018

कमप्यूटर बच्चे

-लगता है आजकल बच्चों की मेधा शक्ति बढ़ गई है।दिमाग कमप्युटर बन गया है। और कमपयूटर का साथ मिले तो नतीजा सामने है।बहुत बधाई रिषभ कृष्णा को, जिसने अपने पहले प्रयास में ही देश के प्रतिष्ठित परीक्षाओं में से एक UPबहुतSC के Central Armed Police Forceठs की परीक्षा में 40वां  स्थान पाया है। पूरे भागलपुर को उस पर गर्व है ।उसकी सफलता इसलिए भी खास है कि बिना किसी प्रोफेसनल कोचिंग के  उसने खुद घर मे रह कर इसकी तैयारी की।कमरे मे वो और उसका कम्प्यूटर। यह एक तपस्या थी इसमे माँँ निभा  जी और पापा  कृष्ण मुरारी जी का भरपूर सहयोग मिला क्योंकि अच्छे कौलेज से इन्जिनीयरिंग करने के बावजूद उसनें नौकरी नहींं की। अच्छी नौकरी के मौके ठुकरा दिये , क्योंकि   उसमें देश सेवा का जज्बा था इसलिए उसने प्रशासनिक सेवा में जाने का मन बनाया । रिषभ की सफलता उन विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है जो किसी कारणवश बाहर बड़े शहरों में  नहीं जा पाते हैं।  लेकिन अगर दृढ़ इच्छाशक्ति आपके पास हो तो आपकी सफलता को कोई रोक नहीं सकता है।

Monday, June 25, 2018

हमारी शिलौंग यात्रा

जब से काका की पोस्टिंग शिलोंग हुई ,हम वहां जाने  का मन बना रहे थे .लेकिन किसी न किसी वजह से हमा कार्यक्रम नहीं बन पा  रहा था .आखिर इस अप्रैल के  दुसरे सप्ताह  में हमारा प्रोग्राम बन ही गया .
                      हम इस लिए भी शिलोंग जाना चाहते थे क्योंकि उसका रास्ता गुवाहाटी  हो कर है और गुवाहाटी में ही जग प्रसिघ्ह कामख्या देवी का मंदिर है .कामरूप कामख्या का वर्णन मैंने कई किताबों में पढ़ रखा था .और फिर हमारे मिथिलांचल में तो इस बारे में कई तरह की किम्वदंतियां प्रचलित हैं जैसे वहां की औरते बड़ी मायावी होती हैं जो बाहरी आदमियों को कबूतर या भेदा बना के अपने पास रख  लेती हैं .इस लिए जो एक  बार कमाने के लिए  आसाम जाता था लौट के कम ही आता था . लोक गीतों में प्रचलित मोरंग भी वही जगह है .
                                     वहाँ की महिलाएं सचमुच मोहक हैं ,अपने पारम्परिक पोषक में तो वो और भी मोहक लगती हैं .(मंदिर प्रांगन में ढेर सारे कबूतर और भेड़ें थे क्या  वो सभी बिहारी मजदुर ही रहे होंगे ?)
                                   मंदिर की बनावट खास कर के उसका गर्भ गृह रोमांचित करता है .वास्तव में देख कर लगता है की यह जगह औघड़ों की साधना के लिए उप युक्त है .वैसे तो पुरे मंदिर में बिजली की व्यवस्था है,लेकिन गर्भगृह में कोई बल्व नहीं लगाया गया है इससे उस जगह की रहस्यात्मकता को बरकरार रखा गया है .इस से एक स्र्ध्हा का माहौल बनता है .
                                   गुवाहाटी जा कर अगर गेंडा नहीं देखा तो क्या देखा .हमने भी उसे उसके  अभ्यारण्य में 
जा कर, पास से देखा .गेंदा देखने हम लोग हाथी  परचढ़ कर गए थे यह भी हमारे लिए एक नया अनुभव था .
पता नहीं गेंदे जैसे निरीह प्राणी को देखने के लिए लोग हाथी पर चढ़ कर क्यों जाते हैं ?फिर वो तो बेचारा शाकाहारी भी होता है  .इतनी मोटी चमड़ी ,इतना विशाल शरीर ,लेकिन हाव -भाव   और मुद्रा से बड़े मासूम और भोले लगते हैं मुझे तो बड़े प्यारे लगे .उनकी  इतनी बड़ी संख्या देख कर  सोचने लगी कही यहाँ भी कुछ माया का चक्कर तो नहीं ? 

देश भक्ति कैसे?

हम फिल्म देख रहे थे अचानक पर्दे पर राष्ट्रगान दिखाया जाने लगा , सभी दर्शक उठ खड़े हुए लेकिन मैं अपने पैरों की समस्या की वजह से उठ नहीं पाई .जब राष्ट्रगान खत्म हुआ  तो मुझे   लगा कि हर कोई मुझे देख रहा है   मेरी मजबूरी थी फिर मुझे डर लगने लगा । इन दिनों देश का माहौल कुछ ऐसा बन गया है कि  ।कुछ स्वयंभू  नेता अपने  आप को भारतीय संस्कृति का रक्षक ,तथा कथित  देश भक्त।  ये लोग अपने तरीक़े से देशभक्ति  की व्याख्या  करते है ।उनके मुताबिक ,अगर  मैं जेएनयू में पढ़ती होती तो मुझे राष्ट्रद्रोही मान लिया जाता। अगर मैं मुस्लिम होती तो मुझे गद्दार मान लिया  जाता  ।फिर चाहे पुलिस से शिकायत हो या  पिटाई सबक सिखाने को कुछ भी  कर सकते हैं।

मैं हिंदू हूं क्योंकि मैंने हिंदू परिवार में जन्म लिया है मैं भारतीय हूं क्योंकि मैंने भारतवर्ष में जन्म लिया है   जन गण मन भारत का राष्ट्रीय गान है ((जो वस्तुतः चारण गान है) । हमें  उसका सम्मान करना चाहिए ।

में हिंदू हूं  लेकिन पूजा करने की मेरी कोई  बाध्यता  नहीं है।

मैं भारतीय हूं उसे साबित करने के लिए मुझे कोई बिल्ला नहीं लगाना पड़ता है ।

 वैसे ही  अपनी देशभक्ति को दिखाने के लिए  राष्ट्रगान के समय उठ खड़े होने की कोई बाध्यता  नही होनी चाहिए ।में मुझे लगता है ,सार्वजनिक   या मनोरंजन  स्थल पर राष्ट्रगान बजाना सही नही है । ना चाहते हुए भी हम उसका वह सम्मान नहीं  कर पाते हैं जो करना चाहिए  ।

Friday, June 22, 2018

प्रवासी न हो

आज कल की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हमसे काफी कुछ छूट रहा है । कुछ ऐसा जिसकी अहमियत हमे फ़िलहाल तो महशूस  नहीं हो रही है। लेकिन हमारे आने वाली पीढ़ी को इसकी कमी जरूर खलेगी | अपनी जड़ों से कटा आदमी जैसे मॉरीसस कभी फिजी के लोग अपनी जड़ों को जानने की बेचैनी में भारत आते हैं | उन्हें कोई कमी नहीं है फिर भी अपने मूल को जानने की इच्छा वहां की मिटटी से जुड़ाव महशुस होता है | 

अब,जब यहां भी हम अपने रिश्तों से तेजी से कट रहे हैं | हमारे घर भी कोई मेहमान नहीं आता | हमारी दुनिया छोटी से छोटी होती जा रही है मियां बीवी बच्चे किसी चाचा मामा फूफा मौसा की कोई जगह नहीं है | 

जबकि अतिथि देवो भवः  की भावना हम भारतीयों में अब भी है। हम जो भी खाते  हैं इच्छा रहती है कि मेहमानों को उससे बेहतर खिलाएं। हर घर में कुछ बर्तन, चादर, टेबल क्लॉथ, सोफा कवर, क्रॉकरी, वगैरा अलग रखा जाता है। मेहमानों के आने पर स्वागत करने के  लिए होता है। अगर  मेहमान के आने की पूर्व सूचना हो तो पूरा घर चमक उठता था  और अचानक घर आए मेहमानों के आने पर भी दरवाज़े तक पहुंचते पहुंचते टेबल पर कोई बढिया कपड़ा जरूर बिछ जाता था। ये कोई तीस पैतीस साल पहले के चलन की चर्चा कर रही हूं।  मेहमान के आते ही कुछ मीठे  के साथ पानी  दिया  जाता था  फिर फटाफट पूरी  और  आलू की भुजिया। गेस्ट खास हो तो सूजी का हलवा और पापड़। 

   ये  वो  जमाना था जब  लोग धडल्ले से डालडा खाते थे ,पचाते थे । अगर मेहमान महीने के अंत मे आए, और अड़ोसी पड़ोसी से काम नही चला, तो किराने  दूकान से खाते पर समान मंगवाये जाते थे।लेकिन आव-भगत मे त्रुटि न हो।

फिर धीरे धीरे बिस्कुट दालमोठ ,से काम चलने लगा | न मेहमान  फुरसत से आते हैं न लोगों में इतनी आत्मीयता रह गई है | अब तो फ्रिज में मिठाई पड़ी रहती है ,क्रॉकरी नई  की नई धरी  रह जाती है   | अब गेस्ट नहीं आते

Saturday, April 7, 2018

अनमोल रिश्ते

शहर मे अफवाहों का बाजार गरम था ,हम  बिगड़ते माहौल की चर्चा मे  सर को याद कर  ही रहे थे की ,तभी वौआ( सर के छोटे बेटे )ने फोन किया, कहा  बाउजी नहीं रहे ।हमें झटका लगा। (प्रोफेसर नरेश झा  TMBU मे अर्थशास्त्र के प्रोफेसर। )इन्होने पी एच डी उन्ही के अंतर्गत किया है इसलिए वो शाब्दिक रूप से भी हमारे गुरु थे।   लगा जैसे सिर से स्नेह की छांव हट गयी हो।  छल प्रपंच से परे एक सरल इन्सान ।पिछले दंगो मे हम कई दिनो। तक उनके घर मे रहे थे।एक परिवार की तरह, हमें लगा ही नही हम मेेहमान हैं।  पूरे परिवार ने जिस आदर और   अपनेपन से रखा ,वो हमारे लिए अनमोल थाती है।   
अपने मूल इलाके से दूर ,ठेठ मैथिल परिवार से मिल कर हमे बहुत अच्छा लगता था। हम अक्सर उनके घर जाया करते थे और ये सिलसिला उनके 
रिटायरमेन्ट तक चला जिसका श्रेय ,कन्हाई जी की मां को जाता है।मिथिलांचल के एक से एक व्यंजन और उनका प्रेमपूर्वक आग्रह से खिलाना, हम उनके स्थाई मेहमान बन गए थे।
   कुछ दिन पहले उनकी पचासवी विवाह वार्षिकी थी । यह बड़ेे सौभाग्य की बात है। उनके श्रवणकुमार सरीखे बच्चों  ने बड़ेे उत्साह एवं धूमधाम से पूना के रिसौर्ट मे मनाया था ।उसी मौके पर सर ने अपनी खुशहाली एवं स्वास्थय का श्रेय अपनी अर्धांगिनी  को माना। सच है ,सर की दिनचर्या उनकी दिनचर्या बन गई थी।
ईश्वर से यही प्रार्थना है की इस विकट परिस्थिती  से उबर कर अपने मन की व्यथा  को भुला कर अपने बच्चों को पिता की कमी  महशूस न होने दें ।
सर को हमारा नमन एवं श्रद्धांजली

Wednesday, March 14, 2018

जख्मी हूँ

जख्मी हूँ।


जख्म कहाँ है,    क्यों बताऊं ?

  • तय

कलेजा छलनी हुआ था, या पीठ पर  ख़ंजर गड़ा था ?

    क्यों बताऊं ?

बेड़ियां पैरों में  थी या गले मे फंदा पड़ा था?

          क्यो बताऊं?

बंधे थे हाथ दोनों या  जुबां पर ताले पड़े थे थे ?

          क्यों बताऊं ?

जख्म ये किसने दिए थे ,अपनो ने या गैरों ने ?

     क्यो बताऊं ?

चाशनी में डूबा तीर था ,या मीठी थी  ख़ंजर,

सोने की बेड़ियाँ थी,डोर रेशमी की थी।

    रंग बिरंगे नकाबों में छुपे चेहरे ,

मत कर  बेनकाब इन  चेहरों को ।

 हिल जाएगी भरोसे की नींव,

जिंदा रहने के लिए ,अच्छा है  राज को राज , रहने दो !

Wednesday, February 28, 2018

अबला नही सबला।

भागलपुर की महिलाएं हमेशा से प्रखर एवं मुखर रही हैं |बात चाहे उच्चशिक्षा की हो या नौकरी की ,बल्कि अपने पारिवारिक बिजनेस को सम्हालने का काम जो प्रायः पुरुष वर्चस्व का क्षेत्र मना जाता है उसमे भी यहाँ की महिलाएं सहयोग करने में किसी से पीछे नही हैं | लेकीन इन दिनों, आये दिन महिलाओं पर हो रहे अत्याचार की धटनाओं ने ये सोचने पर विवश कर दिया है , की आखिर वजह क्या है ?   हमे  पुलिस की कार्यशैली, उसकी संख्या ,एवं पुलिस के प्रति महिलाओं की सोच पर गौर करना चाहिए |भागलपुर  में अगल बगल क्षेत्रों से पड़ने आई छात्रों की संख्या में बेतहाशा वृद्घि हुई है |बढ़ते लॉज इसके उदाहरण हैं |उस हिसाब से पुलिस काफी कम है | पर उन इलाकों में नियमित गस्त से कुछ असर हो सकता है कम से कम सडक छाप मजनुओं को पकड़े जाने का डर  रहेगा पर ऐसा है नही|और सबसे बुरी बात ये है की अभीभी महिलाओं में पुलिस के प्रति वो विश्वास नही जगा है की वो निर्भीक हो कर पुलिस से सहायता ले सकें |

इन हालातों की वजह से अविभावक लडकियों को यहाँ भेजने से  कतराएँगे,जिस से जो भागलपुर महिला सश्तीकरण में काफी आगे था अब पिछड़ने लगेगा इसका सही उपाय यही है की लडकियाँ खुद को सबल बनाएं ,इतनी की उसे किसी पुलिस या  किसी के सहारे की जरूरत न हो ।        

Tuesday, February 27, 2018

बोलते अक्षर: bachhon ka mohak sansar

बोलते अक्षर: bachhon ka mohak sansar

उन्हें उड़ने दो।

हमारे गांव के पुश्तैनी मकान मे ,दिन रात फुदकती रहती थी , दो गोरैया सी  बहने  ,सोनी मोनी |माता पिता ने
अपनी  हथेली पर रख कर पाला है उन्हें | उधर दोनों बेटियां भी नाज करने  वाली हैं  |घरेलू काम में जितनी सुघड .उतनी ही ,सिलाई बुनाई में पारंगत  | हम कहते भी थे इन दो बहनों ने जादू की छड़ी छुपा के रखी होगी ,क्योंकी बड़ा सा मकान है खुला खुला सा ,चाहे उसकी सफाई हो या हमारी आवभगत ,सारा कुछ यूँ यूँ निबटा
लेती थी ।पिछली वार हम
सोनी की शादी में गये थे |रोती -बिलखती सोनी अपने ससुराल चली गयी |हम भी खूब रोए |रो -रो कर विदा किया हमारे रोने की वजह ये भी थी की अब पुरे घर की बागडोर कौन सम्हालेगा ? बिना मैनेजमेंट की पढ़ाई किये इतनी अच्छी व्यवस्था  किसी को कोई शिकायत की नौबत नही आती  थी ।अब भी  बेटी होंते ही  उसे विदा करने की तैयारी शुरू हो जाती है 


उधर प्रतिभावान बेटियों को पढाने की नही विदा करने की जल्दी रहती है ।चूँकि लडकी की कमाई नही लेने की सोच अभी भी दिमाग पर हावी है ,इसलिए उसको ज्यादा पढ़ाने की जहमत कौन और क्यों उठाएं | कोई बेटियों से पूछे ,वो भी तन मन धन से अपने माता -पिता का सहारा बनना चाहती हैं उन्हें एक मौका दे कर देखें ।

       ये तो जग जाहिर है ,कि बेटियां धन   से तो नही, पर तन मन से  परिवार, माता पिता की सेवा करती हैं।इसलिए  उन्हें भी आत्मनिर्भर बनाऐं। यकीन मानिए, वो सूद समेत  लौटाने जैसा होगा।

और आपके लिए जो  सम्मान उसके मन मे बढे़गा ,वो तो अनुभव करने की बात हैं।
 ये बाई वन ,टेक अनलिमिटेड वाला सौदा साबित होगा।






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Wednesday, February 14, 2018

आशिकाना मौसम

 लव का परब  -60 +
पाठक बाबा जब रिटायर्मेंट के बाद अपना ज्यादा समय घर में बिताने लगे तब उन्होंने देखा की पाठकाईन के रिटायर्मेंट का कोई स्कोप नही  है बल्कि उनके घर पर रहने से उनकी बिजीनेस और बढ़ ही गई है उनका घडी - घड़ी  चाय की फरमाइश ! कभी पोते को तेल लगा रही  होती थी, कभी पोती की चोटियाँ गूँथ  रही होती थीं, फिर अचार-पापड़ बड़ियाँ  तो चलती ही रहती थी ,अगर जरा फुर्सत मिली तो टी.वी.था | अलबत्ता उनके घर में रहने से उन्हें उन्हें फ्री फंड बन्दा मिल गया था जब चाहो बाज़ार र्भेज दिया  |
 इन दिनों  माहौल में वलेंटाईन  वीक की तरंग छाई थी ,बाजार में लडके बच्चे धडाधड गिफ्ट खरीद रहे थे | हुंह उन्होते मन में सोचा  ये दुकानदारी चलाने के टोटके हैं इन्हें कौन समझाए | लेकिन माहौल के तरंग का असर उन पर भी पड ही गया ,उन्हें पाठकाईन याद आ गई |लेकिन गिफ्ट के मामले में उनका सर घूम गया  साईंज, नम्बर ,छोटा बड़ा ,रंग डिजाइन कौन इन लफड़ों में पड़े |उन्होंने गुलाब जामुन और मलाई रबड़ी बंधवा लिया ,साथ में दो फूलों के गजरे  भी  ले लिए .उन्हें इन चीजों के साथ देख कर सब  हैरान हो गये बिना मंगवाए क्यों इतनी सारी  चीजें ले आए .? तभी बहु ने कहा  समझ में आ गया ,आज शिवरात्रि है। मिठाई शंकर जी को भोग  लगाने के लिए और शंकर पार्वती के लिए फूलों की माला !
जय भोले नाथ तेरी जय हो ,जय हो ,जय हो |

Monday, January 8, 2018

नहाइए मत !

पूरे उत्तर भारत में शीत लहर का कहर जारी  है |

 ऐसे में मत नहाइए ,नहाना भारी पड सकता है ,फिर न कहना किसी ने रोका नही |
शुभ शुभ नहा के निकल आए तो बधाई आपको ,अगर फंस गये यानि  तबीयत गडबड हुई तो समझ लें आपका यह कृत्य आत्मघात की श्रेणी में आ  सकता है |हमारा कानून जिन्दा रहने की शर्तें भले पूरी न करे ,लेकिन अपनी मर्जी से आपको मरने की इजाजत नही  देता है |फिर अगर किसी ने पुलिस वाले को खबर कर दी  तो ? सीधा जेल ! जरा सोचिये जेल की खटमल वाली कम्बल में जाड़े की रात ,आप कोई घोटाले बाज नेता या लम्पट बाबा तो हैं नही की आपको फाइव स्टारों वाली सुविधा मिलेगी |
 नही नहाने की सलाह कुछ भक्तों को अखर सकती है क्यों न हो आखिर वर्षों के संस्कार जो ठहरे ,लेकिन हमारी गंगा माता हैं न !चाहे जैसा भी पाप करो बेचारी सभी के पाप धोने को तैयार रहती हैं 
इसी परोपकार के काम से बेचारी खुद मैली हो गई है |फिर सोचना क्या ठंड खत्म हो जाए फिर इक्कठे  एक सौ आठ बार हर हर गंगे |