प्रिय
वैभव,अभी चुनाव के दिन चल रहे हैं.तुम्हे तो पता ही है ,चुनाव के समय बिहार का
बच्चा –बच्चा ,राजनीति बतियाने लगता है तुम शायद दिल्ली में इसे मिस कर रहे होगे .है न ?
मुझे पुराने दिन याद आ रहे है तुम तब काफी छोटे थे शायद तीन साल के होगे .तुम्हारे
पापा को मारवाड़ी कॉलेज के होस्टल का सुप्रिटेंडेंट बना दिया गया था ,हम हॉस्टल के
क्वाटर में रहने आ गए थे होस्टल में अराजक
स्थिति थी ..तब वो जगह छुटभैये नेताओं का
अड्डा बना हुआ था ..संयोग से उसी समय विधानसभा के चुनाव की घोषणा हो गई .उनका
चुनाव चिन्ह शायद कुर्सी था कुछ और था मुझे याद
नहीं आ रहा है. खैर....... होस्टल मे सारे ,दिन उन नेता के चेलों के
साथ-साथ जिंदाबाद –जिंदाबाद के नारे लगाने में तुम्हे बड़ा मजा आता था उन्हों ने
तुम्हे सिखा रखा था की अपने मम्मी –पापा को बोलना वोट भैया जी को ही देंगे . .चूँकि तुम काफी छोटे थे इसलिए हम वोट देने के
लिए बूथ पर भी तुम्हे साथ ले गए .तुम्हारे नटखटपन के चलते तुम्हे घर पर छोडना खतरे
से खाली नहीं था .जब मै कमरे में वोट
डालने जा रही थी कि तुम भी साथ जाने को मचलने
लगे.तब इतनी कढ़ाई नहीं हुआ करती थी .तुम्हारा हठ देख कर पुलिस वाले ने तुम्हे मेरे साथ अंदर भेज दिया
.नयी चीज देखने की उत्सुकता वश ,तुमने मैंने किसे वोट दिया था देख लिया वो कुर्सी
छाप बिलकुल नहीं था ,हे भगवान , फिर क्या
था तुमने वहीँ जोर –जोर से रोना धोना शुरू कर दिया .सभी हंस रहे थे .तुम रो –रो के
विलाप किये जा रहे थे .मम्मी तुमने कुर्सी छाप को वोट क्यों नहीं दिया ?मेरे भैया
जी क्या बोलेंगे.वो नहीं जीत पाएंगे
.हा.हा.हा.बड़ी मुश्किल से हम तुम्हे मना कर घर लौटे. .