Sunday, October 31, 2010

असमंजस

अभी बिहार में चुनाव हो रहे हैं. सारा माहौल ही चुनावमय हो गया है. बिहार के लोगों का राजनैतिक ज्ञान गजब का है. अभी तो उन्हें बस छेड़ने भर की देर है. हर प्रत्याशी का बायोडाटा और चुनावी हैसियत उन्हें पता होता है. रोज़ एक से एक नेता आते हैं. नेताओं को सभा स्थल पर जाकर सुनने का शगल कुछ ही लोगों में होता है. उनके लिए समस्या हो गयी है कि किसे सुने किसे छोड़े. अब राजनीति तो सिर्फ जबानी रह गयी है.

कौन सा नेता अपनी बातों को कितने प्रभावशाली रूप में रख रहा है बस इसी का खेल है. वैसे माने तो शब्दों की बाजीगरी बहुत बड़ा गुण ही है. किसी मुद्दे को उठाकर लोगों का ध्यान उसकी तरफ खींचना एक कला ही तो है.

जब आप नेताओं का भाषण सुनते हैं तो मन अभिभूत हो जाता है. अपनी पार्टी के प्रत्याशी का ऐसा वर्णन, मानो वही एक मात्र हैं. लेकिन भाषण सुनकर जब आप अपने घर की टूटी फूटी सड़क, गन्दी गलिओं से लौट रहे होते हैं तो सारा भ्रम दूर हो जाता है.

मन दिग्भ्रमित है, बड़ी असमंजस की स्थिति है.

अपना वोट किसे दूँ?

Monday, October 18, 2010

खुशियाँ हमारे चारों ओर हैं ।

एल्बम के पन्नो में
पुराने दराज के कोने में ,
अलमारी के किसी कपडे में ,
गद्दे के नीचे किसी खत में ,
ख़ुशी छुपी पड़ी है ,उसे ढूंढ़ लो ।
बरसात के सूखे तौलिये में ,
जाड़े की गुनगुनी धुप में ,
गरम चाय की चुस्कियों में ,
ठेले के चटपटे भुट्टों में ,
सुख कहीं आस-पास है ,उसे समेट लो .
पुराने स्कूटर के स्टार्ट हो जाने में ,
भरी बस में सीट मिल जाने में ,
देर रात ऑटो मिल जाने में ,
बॉस के अचानक छुट्टी पर चले जाने में ,
मस्ती इन्ही में है , इन्हें इंजॉय करो .

Monday, October 11, 2010

इस वार का कॉमन -वेल्थगेम्स हमने भी देखा
खेल देखने के अनुभव को मैं दो भागों में बाटना चाहती हूँ पहले हिस्से में खेलों के दौरान दिल्ली में रहने से ले क़र टिकट कटाने का है
जो लोग दिल्ली में नहीं रहते हैं ,उन लोगों को जरूर इस बात से बड़ी इर्ष्या हो रही हो गी कि काश इन दिनों हम भी दिल्ली में रहते .लेकिन हमारी जो गति हो रही है सो हम ही जान रहे हैं .खेल शुरू होने केपहले ही हमने पंद्रह दिनों का रसद -पानी ,जरुरी सामानखरीद क़र रख लिया था .अभी तो कहीं आने जाने कि सोचना भी मुस्किल है ,जो लोग घर से निकलते हैं उनके घर लौटने के समय का कोई ठीक नहीं रहता है ,सब्जी -फल वालों के ठेले हटा लिए गए हैं इस लिए एक तो मिलनी दिक्कत और अगर मिल भी गयी तो औने -पौने दामो पर मिल रही हैं
खेलों के टिकट स्टेडियम के पास नहीं मिलते .किन्ही खास जगहों पर या ऑन लाइन मिलते भी हैं तो कहीं जा क़र आपको लेना पड़ता है .मतलब ये कि अगर कामकाजी आदमी खेल देखना चाहे तो सिर्फ एक खेल देखने के लिए उसे अपना पूरा दिन लगाना पड़ेगा दुसरे खेल के लिए उसे फिर से छुट्टी लेनी पड़ेगी.टिकट लेने के लिए आपको अपना कोई पहचान पत्र ले क़र जाना होगा ,और खेल lदेखने जाने में तो ,आप कुछ भी नहीं ले जा सकते हैं इन सब चीजों कि पूर्व जानकारी कहीं भी नहीं दी जाती है
हमने जवाहरलाल नेहरु स्टेडियम का टिकट लिया था ,मकसद यही था खेल के साथ-साथ मुख्यस्थान देखना और एक साथ कई खेल देख लेना
नेहरू स्टेडियम वाकई विश्व स्तरीय बन पड़ा है वो तमाम चीजें और सुविधाएँ वहां हैं जो अब तक हम विदेशों में देखा करते थे .
स्टेडियम के चारों ओरअभूत पूर्व सुरक्छा व्यवस्था कि गयी है .भले ही जिसके चलते लोगों को काफी चलना पड़ता हो .हर टिकट में मेट्रो से जान-आने कि सुविधा दी गयी है साफ सफाई तो ऐसी किलगता ही नहीं है कि वो ही दिल्ली है वाकईदिल्ली को काफी खूबसूरती से सजाया गया है फिल हाल ऑटो वाले भी पुलिस के डर से अनाप -सनाप भाडा नहीं वसूल रहे हैं चप्पे- चप्पे पर पुलिस तैनात हैं कहीं से भी कभी भी आओ -जाओ कोई डर कि बात नहीं .
इन खेलों के आयोजन से दिल्ली वासियों को कई फायदे हुए हैं ,जैसे मेट्रो सेवा का विस्तार ,नेहरु स्टेडियम कई फ्लाई ओवर कई जर्जर सड़कों का पुनः -उध्हारऔर सबसे बड़ी बात इस बात का आत्म विस्वास जगा है कि अपने देश में भी इतना बड़ा आयोजन हो सकता है

Sunday, October 10, 2010

हे भवानी , दुःख हरु माँ ,पुत्र अप्पन जनि कय
दयरहल छी कष्ट भारी बीच विश्व में आनि कय ,
अखन मिथिलांचलक घर आँगन ,प्रत्येक मंदिरक प्रांगन अहि तरहक गीत सं गुंजायमान होयत .भगवान मनुष्य केकतबो कियक ने दौकमुदा भगवती आगांसदैब दीन-हीन ,प्रार्थी बनल रहैत अछि .मिथिलाक गीत में जेहन अटूट श्रधा ,समर्पण ,विनय तत्त्व रहैत छैक जे मोन भाव विभोर जैत छैक .हम कतेको गीत सुनैत छियैक लेकिन अहन भाव -प्रवणता अन्यत्र कहाँ?सम्पूर्ण वातावरण देवीमय बनल रहैत छैक .एक भोरे अन्हारे सं फूल लोधय के काज सं पूजा के ओरीयान कार्यक्रम आरम्भ होइत छैक से चीनबार निपनाई, सराई -लोटा ,मज्नाई ,पूजा -पाठ व्यवस्था ,भोग इत्यादी करैत -करैत अबरे जैत छैक .दिन कोना बीत जैत छैक नहि बुझैत छई. तैं कनिए काल बाद ,संध्या आरती समय भय जैत छैक. अंतिम तिन चारि दिन मेला देखबाक उल्लास अखनो गाम घर में छैक. भगवतीक दर्शन तं प्रमुख कारन रहिते छैक ओ गामक मेला में झिल्ली -मुढ़ी ,कचरी क आनंद ,गरम जिलेबी क अपूर्व स्वाद, शहरक पिजा -बर्गर में कहाँ ? भागलपुर जिला में एकटा गाम छैक भ्रमरपुर, ओत्तुका भगवती के बड़ महिमा छनि ओही गामक लोग सब ,नियम कयने छथि जेओ सब कत्तहु कमाय-खाय लेल कियैक ने बसी गेल होथि,शारदीय नवरात्रा में सब गोटेअप्पन गाम अवस्य अबैत छथि आ भगवती क आशीर्वाद ले क धन्य होइत छथि हमरा त इ परम्परा बड्ड निक बुझाइत अछि तें हम सब सं आग्रह करब जे अप्पन गामक भगवती के नहीं बिसरू ,अपन घर- घरारी के वैह कल्याण करती, इति शुभ.

Friday, October 8, 2010

आहा !दुर्गापूजा !मन उत्साह से भर उठा है .शारदीय नवरात्रा में तो लगता है मनो पूरी प्रकीर्तिदेवी का स्वागत कर रहि हो .वातावरण में एक नयी उमंग एक नया उत्साह एक नई ताजगी का अहसास छा जाता है .मौसम अचानक से बदल जाता है ,बरसात कीउमस वाली गर्मी से राहत मिलती है क्योंकि खुश्क हवा माहौल को खुशनुमा बना देती है
मेरे लिए तो दुर्गा पूजा शुरू होने का मतलब -दस दिनों तक सात्विक भाव से देवी की पूजा ,अर्चना ,आरती भोग -नए कपडे ,तरह तरह के नए पकवान -अंतिम तीन चार दिन ,पंडालों में जा कर प्रतिमा दर्शन ,घूमना -फिरना ,सम्बन्धियों से मिलना .सचमुच जीवन में एक ताजगी छा जाती है । आईये त्यौहार मनाएं ,
जीवन में नयापन लायें । मेरी शुभ कामनाएं ।

Wednesday, October 6, 2010

मेरा कम्प्यूटर ग्यान कुछ ऐसा ही है जैसे कोई कम पढ़ा -लिखा व्यक्ति ,ऊपर से इंग्लिश स्पीकिंग का कोर्स करले
दर असल घर में एक कम्प्यूटर है एवं नेट की सुविधा है ही .सुबह सब के चले जाने के बाद ,मेरे लिए करने को कोई खास काम नहीं रह जाता है सो बच्चों ने मेरे टाइम पास के लिए मेरा एक इ.मेल इ.डी.खुलवा दिया ,कहा नहो तो तुम हमें अपनी दिनचर्या ही मेल किया करना .फिर मैंने धीरे धीरे न्यूज़ पढना शुरू किया और उस पर अपनी प्रतिक्रियाएं भेजनी शुरू की ।
ढेरोंविचार ,सुझाव ,भाव व्गेरह तो पहले भी आते ही थे लेकिन उन्हें प्रकाशित करने का उपाय इतना सहज नहीं था .पेपर -पत्रिका वाले हमें क्यों भाव देते .वो तो भला हो इस नेट की दुनिया का और इस ब्लॉग की कल्पना करने वालों का .शुरू -शुरू में टाइकरने में भी बड़ी मुश्किल होती थी हिंदी के सही हिज्जे अंग्रेजी अक्षरों के हिसाब से लिखना थोडा कठिन जरुर है फिर कभी तो सारा लिखा हुआ अचानक से गायब हो जाता था लेकिन अब थोड़े से अभ्यास से सहजता से लिख लेती हूँ ।
अपने मन की बात औरों से बाँट पा रही हूँ इसका आनंद ही कुछ और है फिर हिंदी ब्लॉग लेखन का परिवार इतना विशाल एवं समृद्घ है यह उसमे प्रवेश करके ही जाना जा सकता है आधुनिक युग की सरस्वती अब इन्ही में बसती हैं .

Tuesday, October 5, 2010

पता

दूसरों का पता रखना, दूसरों को पता बताना,
तेरा अपना पता क्या है?
जो, तुझे अपना ही पता, नहीं पता,
फिर गैरों कि क्यों पता?
तेरा असली पता, तेरे अन्दर है।
क्यों उसे ढूंढ़ता है बाहर, पता नहीं
अगर मिल जाये ,तुझे अपना पता,
दुनिया को पता, चल जायेगा तेरा पता .